ईश्वर, जीव, प्रकृति ये तीन अनादि तत्त्व हैं। इनमे प्रकृति सत् अर्थात सत्तात्मक अनादि तत्व है जो सृष्टि का उपादान कारण और जड़ स्वरुप है। जीव सत् और चित् अर्थात चेतन सत्ता है जिसके इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दु:ख, और ज्ञानादि गुण हैं। ईश्वर सच्चिदानंद स्वरुप है। सृष्टि की उत्त्पत्ति, स्थिति, प्रलय करना और जीवों को उनके कर्मों के अनुसार यथायोग्य फ़ल देना अर्थात न्याय करना ये दो कार्य हैं। जीव और ईश्वर दोनो चेतन स्वरुप, दोनो पवित्र स्वभाव, अविनाशी और धार्मिकता से युक्त हैं। ईश्वर से सब कार्य धर्मयुक्त एवं जीव के मिश्रित जानने चाहिए।
सुख और आनंद मे भेद
जो इन्द्रियों को अच्छा लगे, वह सुख "सुहितं खेभ्य:" कहलाता है। शाश्वत सुख को आनंद कहते हैं। यह आत्मा का विषय है। यद्यपि इन्द्रिय जन्य सुख-दु:खादि का कर्ता-भोक्ता भी आत्मा है।जिसके पास जो वस्तु नही होती वह उसकी कामना करता है। प्रकृति जड़ होने के कारण जीव को क्षणि सुखानुभुति करा सकती है। शाश्वत सुख और आनंद के लिए उसे परमे्श्वर की ओर मुड़ना ही पड़ेगा।
16 टिप्पणियां:
संस्कृत में क्या नहीं है !
वाह । शुभकामनाएँ आचार्य।
दर्शन के बजाय संस्कृत शिक्षण की योजना हो तो मुझे शिष्य स्वीकारने का अनुग्रह करें।
main girijesh rao ji ka samrthan karta hun aur mujhe bhi shishya rup me swikaren agar sanskrit shikshan vo bhi online ho sake to.
संस्कृत सिखा रहे हैं आचार्यवर तो हमें भी अपना शिष्य स्वीकार करें.
हमारा भी जीवन धन्य करें.
बताइये कि किस प्रकार से हम अपनी इस भाषा का उत्थान कर सकते हैं.
संस्कृत का अध्ययन माध्यम हिंदी हो तो हम सभी हिंदी-भाषियों को सुविधा होगी, अन्यथा संस्कृत माध्यम रहेगा तो थोड़ी सी कठिनाई ही होगी.
नमस्कार
ब्लोगिंग की दुनिया में भरापूरा स्वागत करते हैं.आपके ब्लॉग पर आकर कुछ सार्थकता लगी है.यूहीं लगातार बने रहें और बाकी के ब्लोगों पर सफ़र करके अपनी राय जरुर लिखें.यही जीवन है.जो आपको ज्यादा साथियों तक जोड़ पायेगा.
सादर,
माणिक
आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से सीधा जुड़ाव साथ ही कई गैर सरकारी मंचों से अनौपचारिक जुड़ाव
http://apnimaati.blogspot.com
http://maniknaamaa.blogspot.com
अपने ब्लॉग / वेबसाइट का मुफ्त में पंजीकरण हेतु यहाँ सफ़र करिएगा.
http://apnimaati.feedcluster.com/
यद्यपि संस्कृत प्रचलन से बाहर हो गयी है , किन्तु भारतीय जन मानस में यह सर्वाधिक सम्मान्य है। यही समस्त भाषाओँ की जननी है । चूँकि यह जन भावनाओं में समाहित है अतएव, इसे व्यवहार में पुनर्जागृत एवं प्रयुक्त करना पूर्णतया संभव है । यही एक ऐसी भाषा है जो भारत में चल रहे भाषायी विवाद को दूर कर सकती है । यह सभी भाषाओँ में सम्मिलित है इसलिए इसकी स्वीकार्यता पर विवाद नहीं होना चाहिए। आवश्यकता है दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति की।
संस्कृत का प्रचार प्रसार कर आप अनुपम कार्य कर रहे है । स्वागत है ।
गुलमोहर का फूल
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
स्वागत है आर्य !
आचार्यश्री को प्रणाम,
आचार्य जी मैंने वैकल्पिक विषय के रूप में संस्कृत का परास्नातक स्तर तक अध्ययन किया है। मेरे हृदय में संस्कृत के लिए वही स्थान है जो एक माता के लिए होता है। संस्कृत भारती की कक्षाएं भी मैंने अपने कुछ साथियों के साथ की थीं जिसके चलते ठीक-ठाक संस्कृत मैं बोल भी लेता हूं। इस समय में पत्रकारिता में आने के कारण ज्यादा समय नहीं दे पाता हूं। मैंने भारतीय दर्शन, ऋग्वेद के कुछ सूक्त, पाणिनी व्याकरण, साहित्य में कालिदास, भवभूति, शूद्रक और कई महाकवियों का अध्ययन किया है। वैज्ञानिक आधार पर देखें तो मैंने संस्कृत को बहुत ही समृद्ध पाया। मेरे लिए यह दुखद है कि मैं अब संस्कृत का अध्ययन ज्यादा नहीं कर पा रहा हंू। लेकिन ब्लॉग पर आपको देखकर मैं गदगद हो गया। आप को मेरा पुन: प्रणाम।
waakai sabkuch hai
स्वागत है धनंजय शास्त्री जी।
मुझे वह दिन याद है जब
हम पहली बार गुरुकुल में मिले थे।
अब आप आ गए हैं ब्लाग जगत में
तो कभी अपने भी स्मरण लिखुंगा
गुरुकुल पर और अन्य मित्रों पर्।
शुभकामनाएं
your mission is great
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
Bahut abhyaspoorn aalekh hai!
सादरं नमो नम:
महोदय प्रथमत: संस्कृतस्य ब्लागलेखन कार्याय भवत: हार्दिकं अभिनन्दनं स्वागतं च।
भवत: ब्लाग उपरि आगत्य किंचित शान्ति: प्राप्ये।
अधुना किंचित स्वस्य परिचयं ददामि।
अहं संस्कृत भारती संस्थाया: लखनउ नगरस्य सुभाष खण्डस्य नगर संयोजक:।
कदाचिदपि कस्यचिदपि सूचना: यदि आवश्यकी चेत् मम ब्लाग टिप्पण्यां लिखतु।
शुभाशया:
जयतु संस्कृतं, जयतु भारतम्
एक टिप्पणी भेजें